तिथी
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पौष शुक्ल १० (१२:२०)
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वार
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मंगळवार
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नक्षत्र
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कृत्तिका (२१:४५)
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योग
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शुभ (८:२८), शुक्ल (२९:५५)
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करण
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वणिज (२३:३०)
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मन्वादि
१४ मन्वंतराच्या आरंभ
झाल्या अशा १४ तिथीना मन्वादि असे म्हणतात. या मन्वादि १४ तिथी पुढे दिल्या आहेत.
१
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स्वायंभुव
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चैत्र शुक्ल तृतीया
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२
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स्वारोचीस
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चैत्र शुक्ल पौर्णिमा
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३
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उत्तम
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कार्तिक शुक्ल पौर्णिमा
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४
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तामस
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आषाढ शुक्ल पौर्णिमा
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५
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रैवत
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कार्तिक शुक्ल द्वादशी.
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६
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चाक्षुस
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आषाढ शुक्ल दशमी.
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७
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वैवस्वत
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ज्येष्ठ शुक्ल पौर्णिमा.
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८
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सावर्णी
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फाल्गुन शुक्ल पौर्णिमा.
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९
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दक्ष सावर्णी
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आश्विन शुक्ल नवमी.
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१०
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ब्रह्म सावर्णी
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माघ शुक्ल सप्तमी
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११
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धर्म सावर्णी
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पौष शुक्ल एकादशी.
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१२
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रुद्र सावर्णी
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भाद्रपद शुक्ल तृतीया.
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१३
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देव / रुची
सावर्णी
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फाल्गुन शुक्ल अमावस्या.
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१४
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इंद्र/ भूती
सावर्णी
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श्रावण कृष्ण अष्टमी.
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‘मनु’ बाबत श्रीमद्भ्गव्दगीतेत
म्हटले आहे
महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ! मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा प्रजा: !!
(श्रीमद्भ्गव्दगीता
अध्याय १०: श्लोक ६ )
अर्थ: श्री कृष्ण
म्हणतात हे अर्जुना सात महर्षी जन आणि
त्यांच्याही पूर्वी झालेले चार सनकादिक तसेच स्वायंभुवादी चौदा मनु हे माझ्या ठिकाणी भाव असलेले सर्वंजन माझ्या संकल्पाने उत्पन्न झालेले आहेत आणि जगात
यांच्याच ह्या सर्व प्रजा आहेत.
भद्रा
२३:३० नंतर भद्रा म्हणजेच विष्टी करण
आहे. प्रत्येक
चांद्रमासात ८ वेळा भद्रा येते. विष्टीला भद्रा, कल्याणी अशी नावे आहेत. शुभ
कार्यासाठी हा काल निंद्य मानला आहे.
संदर्भ :
दाते
पंचांग
सुलभ
ज्योतिष शास्त्र
इंटरनेट
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